Nov 262012
 

 

 

कुछ  दिन पहले मैं परिंदों की फोटो  खींचे के लिए  ताल छप्पर सैंक्चुअरी गया था। लोटे वक़्त मेरी रेल  की  टिकेट कन्फर्म नहीं हुयी थी, सो मैंने सोचा क्यों ना हवाई यात्रा की जाये। बस जानब हम पहुँच गए लो कास्ट एयरलाइन्स की टिकेट खरीद कर।   कृपया नोट करें यह पोस्ट पहले मैं इंग्लिश मैं लिख चूका हूँ और यह हिंदी में  लिखने का मेरा पहला प्रयास   है। 

इस यात्रा के दोरान मुझे कुछ ऐसे सहयात्री मिले की  उनके बारे मैं लिखने की इछा हुई। उम्मीद करता हूँ की आप लोंगों को उनके बारे मैं पद कर आनंद आयेगा। अगर किसी की भावनाओ  को मैं ठेस पहुंचा रहा हूँ तो अभी से छमा  याचना करता  हूँ।
आम तोर पर यात्रा के दोरान मैं ऑंखें बंद कर के सो जाता हूँ  किन्तु यह फ्लाइट करीब 8 बजे की थी सो मैंने सोचा की अभी सो गया तो रात भर उल्लओं की तरह जागता रहूँगा इस्लीय आस पास के नज़ारे देखने लगा। काफे दिलचस्प लोग थे आस पास।
  1.  कालिया: पहले सज्जन ( यदि उन्हें सज्जन कहा जा सकता है तो) जिन्होंने मेरा ध्यान खींचा थे श्रीमान कालिया। जी नहीं उन्होने मुझे अपना नाम नहीं बताया था, वो तो मैंने खुद ही उन्हें पहचान लिया। जी नहीं  उनका रंग काला नहीं था, क्यूँकी काफी फेयर  और स्टुपिड का प्रयोग कर कर उनकी त्वचा काफी गोरी हो चुकी थी। यह बात और है की गर्दन उनके असली रंग का भेद खोल रही थी। उनकी कालिया के तौर पर पहचान आसानी से हो गयी क्योंकी वोह मुझे और मेरे आगे की 5 लोगों को देखे बगैर सीधे काउंटर पर पहुँच गए और अपना टिकेट पेश  कर दिया। बेचारी सुकन्या जो काउंटर पर बेठी थी भी कालिया जी को कुछ नहीं कह पाई , आखिर कार “लाइन वहीँ से शुर् होती है जहाँ कालिया खड़ा होता है।”
  2. भुल्लकड़ : दूसरे सज्जन थे श्रीमान भुलक्कड़ , काउंटर पर पहुँच कर उन्हें याद आया की टिकेट भी दिखानी होती है, तो पांच मिनट तो उनके टिकेट ढूँढने मैं लग गए। उसके बाद उनके पास केवल फोटोकॉपी थी पहचान पत्र की, जब की एयरलाइन के नियमों के अनुसार आप को ओरिजिनल पहचान पत्र दिखाना आवश्यक है। मेरी समझ मैं यह नहीं आ रहा था की वोह एअरपोर्ट के अन्दर कैसे आया था। थोड़ी ही देर मैं यह राज़ भी खुल गया। थोड़ी माथा पची की बाद भुलक्कड़ जी ने सोचा की क्यों न घर फ़ोन घुमाया जाये और अपनी माता जी से उन्होंने बात की।माता जी ने समझाया की तूने बैग मैं तो नहीं रख लिया पहचान पत्र। बस भुलक्कड़ जी का तीसरा नेत्र जाग गया और तुरंत ही उन्होंने अपने लैपटॉप बैग की आगे  की जेब से अपना पहचान पत्र निकल लिया। जय माता की। हम सब ने चैन की सांस ली और पंक्ती फिर आगे  खिसकने लगी
  3. मेरा बाप कोंन है: इन ज़नाब को या तो अपने पिताजी के बारे मैं पता नहीं था, या वोह गम चुके थे, क्योकी वोह कोइ मोका  नहीं छोड़ रहे थे यह पूछने का की तुम्हे पता है की मेरा बाप कोंन है? ख़ास तोर पर उन्होंने एअरपोर्ट सिक्यूरिटी को तो कई बार यह प्रश्न घुमा फिर कर किया। जैसे की।। बेल्ट उतरने की क्या ज़रुरत है ? फ़ोन बैग मैं क्यों रखूँ? जैकेट मैं कुछ नहीं है।।। मुझे सर्दी लग रही है तो जैकेट क्यों उतारूं ? पब्लिक को तंग करते हैं टेररिस्ट को नहीं पकड़ते . वोह जब भी सिक्यूरिटी से बहस करते थे मुझे तो एक हे बात सुनाई दे रही थी की बो चीख चीख कर पूछ रहे है, “तुम्हे पता है मेरा बाप कोन  है ?   
  4. राहू और केतु: राहू और केतु या तो सहकर्मी थे जो हैदराबाद किसी मीटिंग के लिए आ रहे थे , या फिर चचेरे ममेरे भाई जो की हवाई अड्डे  पर अलग अलग पहुंचे और उनको अलग अलग सीट मिली प्लेन मैं . इस कारण  वो बहुत ही उदास थे . प्लेन मैं चदते हे उन्होंहे मेरे जैसे अकेले यात्रियों को कुरेदना शुरू कर दिया। वोह चाहते थे की मैं अपनी सीट उनमे  से एक के साथ बदल लूं जिससे की वोह दोनों इस छोटी सी दो घंटे की   उड़ान मैं साथ बैठ सके। मेरी समझ मैं नहीं आया की दो घंटे मैं उन्होंने ऐसी कोन  सी बातें करनी थी जो की वोह 2 घंटे बाद नहीं  कर सकते थे . कोई ओर दिन होता तो मैं तुरंत हे मान जाता, परंतू आज मैंने  इस कोने  की सीट के एक्स्ट्रा पैसे दिये थे और वेज  खाना भी आर्डर किया था। अब पूरी प्लानिंग बदलनी पड़ती। और वैसे भी मैंने अपना हैंडबैग अपनी सीट के ऊपर रख दिया थो और मुझे फिर से उसे उठा कर ले जाना पड़ता। इसलिये मैंने विनम्रता से मन कर दिया। राहू और केतु काफी उदास हो गए और दूसरा शिकार ढूँढने  लगे। पर पीछे से छींटा कशी  भी की, ” अरे ये मद्रासी टाइप होते ही ऐसे हैं, अपना दिल्ली वाला होता तो फट से मान जाता”. मेरा मन तो था की उन्हें बोलूँ की इस तरह से कमेंट करना गलत बात है, और रेसिस्म का उधाहरण है, तथा मैं खुद दिल्लीवाला हूँ, और यह फ्लाइट हैदराबाद जा रही है मद्रास कहाँ से बीच मैं आ गया। और अगर मद्रास को बीच मैं लाना हे है तो चेन्नई को लाओ मद्रास तो पुराना नाम है। पर राहू और केतु तब तक किसी और सज्जन के ऊपर अपनी छाया डाल रहे थे।
  5. गुलाम ए  फ़ोन: यह साहब पूरा टाइम अपने फ़ोन से चिपके हुए थे। या तो किसी बड़ी डील पर काम चल रहा था या फिर अपनी किसी सहेली के साथ चैटिंग कर रहे थे। पहले तो मुझे लगा की उनके पास काली बेरी है, पर नहीं काली बेरी वाले तो अज कल टीवी पर गाना गाने मैं जादा व्यस्त हैं और फ़ोन बेचने का टाइम नहीं है उनके पास। यह भाई साब ने इसी लिए एंड्राइड फ़ोन लिया हुआ था और पूरे  जोश मैं उसपर कुछ टाइप कर रहे थे। एयरहोस्टेस  की बात उन्होने सुनी नहीं की अब फ़ोन बूंद करने का समय आ गया है और अपना मस्त  फ़ोन से चिपके  थे। हार कर एयरहोस्टेस को उनके पास आ कर धमकाना पड़ा के फ़ोन नहीं बंद करेंगे तो वोह छीन  लेगी, तब जा कर उन्होंने फ़ोन बंद करा।
  6. रिपोर्टर जी: ये तो मैं नहीं जान पाया की वोह किस अखबार या टीवी चैनल मैं काम करते थे पर पूरे रस्ते वोह अपने हेड क्वार्टर लेटेस्ट ब्रेकिंग न्यूज़ भेज रहे थे। नमूना पेश है  ” हांजी सिक्यूरिटी हो गयी है।।।।। ओये  हमारी कहाँ चेकिंग लेडीज पुलिस करेगी।।।” . ” बस मैं AC नहीं हैं! , ” यार कार्नर की सीट नहीं मिली, ..हाँ हाँ  सोहनी है, पर किंगफिशर वाली बात नहीं  है।, चल रखता हूँ यार  एयरहोस्टेस घूर रही है।। …………  ओये नहीं फ़ोन के लिए, ले मेरे आगे वाले का तो फ़ोन ऑलमोस्ट छीन  लिया है, रखता  हूँ मेरा फ़ोन भी ना छीन ले।।। लैंड होते ही कॉल करता हूँ . … और लॅंडिंग पर हाँ यार जस्ट लैंडेड।।।बैग की वेट करनी पड़ेगी, मैं कहा भी  था की अंदर  ले जाने दो, पर वोह मानी  नहीं। अब एक घंटा सामान का वेट करो।।।।। हाँ मेरा  कॉलेज बडी बंटी आ रहा है। ओये बड़ा आदमी होगा अपने घर मैं हमारा तो यार है।  यू एस वू एस  जाता रहता है, पिक करने एअरपोर्ट आ रहा है।।
  7. आओ बचत करे: सामान की वेट करते वक्त यह भाई साब सब को घूर रहे थे और कुछ लोगों के पास बात करने भी पहुंचे। फिर मेरे पास भी ए। मेरा इंटरव्यू लिया मैं कहाँ से आया हूँ, कहाँ जा रहा होऊँ, कोई  मुझे लेने आयेगा क्या एअरपोर्ट पर? सच कहूं तो मैं कुछ घबरा सा गया था की यह भाई साहब क्यों यह सब पूछ रहे हैं। कई तरह के विचार आये मन मैं , कहीं यह मेरे सामन मैं फिल्मों की तरह ड्रग्स तो नहीं डाल देगा , या फिर  किसी किडनैप गंग का मेम्बर है? खैर मैंने उन्हें बतया की मैं अकेला हूँ और एअरपोर्ट से प्रीपेड टैक्सी लूँगा। बस टैक्सी का नाम सुन कर उनकी तो बांछे  खिल गयी . फट से बोले के क्यों नहीं हम टैक्सी शेयर कर ले और पैसे बचा ले . विचार तो अच्हा  था पर देर रात मैं किसी अनजान के साथ टैक्सी शेयर करने का विचार मुझे सेफ नहीं लगा इस लिए मैंने इन भाई साहब को भी नाराज कर दिया।
  8. लेखक ब्लॉगर टाइप: घर आ कर मैने इन सातों के बारे म अं श्रीमती जी को बताया तो वोह बोली यह सब तो ठीक है पर आप  आठवे टाइप को तो भूल हे गए। मैंने पुछा वोह कोन ? तो बोली वोह तो लेखक ब्लॉगर टाइप है और अपना काम करने की बजाय  दूसरों की बातें सुनता रहता है। ऐसे जासूस किसम के सहयात्री से भगवान् बचाय.
 
मेरी समझ मैं नहीं आ रहा की प्लेन मैं एक आठवी किसम का यात्री भी था  यह बात मुझे क्यों नहीं पता लगी और उस से भी बड़ी बात यह की श्रीमती जी को यह सब किसने बताया? मेरा शक उस एयरहोस्टेस पर है, लग तो वोह रही थी श्रीमती जी के चचेरी बहन  की सहेली की रूममेट की सिस्टर जैसी थी . आप को किसी पर शक है तो कृपा कमेंट्स मैं लिख कर भेज दें। 
Check the English Version of this post here, would love to know which one  you like  better.
कुछ और लाइट हार्टेड पोस्ट्स
 
 

  8 Responses to “एक यादगार हवाई यात्रा – Hindi Version of A flight To Remember”

Comments (8)
  1. Loved it in Hindi 🙂 Interesting write up.

  2. Bahut hi acha likha hai aap ne!

  3. can’t stop smiling even for a moment while reading article..he he he 🙂

  4. Very nice one. You write quite good. Thanx.

Dear fellow traveler welcome to desi Traveler, I am excited to have you here, please share your thoughts and I will be very happy to reply. Please check our Blog Comment Policy. All comments are moderated and urls in comments end in spam automatically. Happy travels.

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

503 Service Unavailable

Service Unavailable

The server is temporarily unable to service your request due to maintenance downtime or capacity problems. Please try again later.

Additionally, a 503 Service Unavailable error was encountered while trying to use an ErrorDocument to handle the request.